आयोजन श्री स्वामीनारायण आश्रम में भागवत कथा का रसपान कर रहे श्रद्धालु सेवा और समर्पण के बिना किया गया प्रेम अधूरा है- स्वामी विद्यानंद सरस्वती

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उज्जैन सेवा और समर्पण के बिना किया गया प्रेम अधूरा है। समर्पण भाव से प्रीति सुदृढ़ होती है जबकि दिखावे के प्रेम में केवल औपचारिकताएं ही रहती हैं। त्रिवेणी के समीप श्री स्वामीनारायण आश्रम में आयोजित श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ के छठे दिन भागवत तत्व के प्रवक्ता एवं श्री सद्गुरु धाम आश्रम बरूमल गुजरात के पीठाधीश्वर स्वामी विद्यानंद सरस्वती महाराज ने भगवान श्रीकृष्ण के बाल रूप के प्रसंगों का वर्णन करते हुए वात्सल्य लीला की व्याख्या की। स्वामी जी ने कृष्ण के स्वरूप के बारे में कहा कि कृष्ण में नारायण या नारायण में कृष्ण एक ही हैं, इसमें भेद नहीं किया जा सकता है। जो आत्म तत्व को जान लेते हैं वह शोक से मुक्त हो जाते हैं। संत महात्माओं के सानिध्य से हिंसक भी अहिंसक हो जाते हैं, वहां पर भेदभाव नहीं रहता है। स्वामीजी ने कहा कि आजकल संसार और व्यवहार में कोई भी अपनी भूल स्वीकार नहीं करता वह इसके लिए अन्य को ही दोषी मानता है। स्वामी जी ने श्री कृष्ण की वात्सल्य लीला को माता यशोदा एवं गोपियों के माध्यम से समझाया एवं श्री कृष्ण के नारायण स्वरूप की व्याख्या की। उन्होंने कहा कि संपूर्ण जगत नारायण का स्थान है और भारत अध्यात्म से जुड़ा है इसलिए यहां अभिवादन के लिए प्रणाम किया जाता है। श्रीमद्भागवतजी की आरती में शामिल श्रद्धालु। प्रार्थना की, भजन की प्रस्तुति दी कथा आरंभ के पहले श्री अरविंद सोसायटी उज्जैन के चेयरपर्सन विभा उपाध्याय ने सावित्री महाग्रंथ से एक प्रार्थना की। उन्होंने कहा कि श्री अरविंद ने सावित्री के माध्यम से अंग्रेजी को मंत्रिक शक्ति प्रदान की है। आरंभ में दुर्गेश श्रीवास्तव में भजन प्रस्तुत किया। भागवत की आरती में स्वा दुर्गादास महाराज, स्वामी आनंददास महाराज, स्वामी मुनिशरण दास ने महाराज, संघ प्रचारक अनिल डागा, लक्ष्मी देवी दिल्ली और अमेरि न्यूजर्सी से आए राकेश नायक उपस्थित थे।

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