सांसारिक प्रतिस्पर्धा ही दुःख का कारण – स्वामीजी विद्यानंद सरस्वती जी महाराज ने स्वामीनारायण आश्रम पर नौ दिवसीय भागवत कथा में कहीं।

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उज्जैन वर्तमान में सांसारिक प्रतिस्पर्धा और विषयों के प्रति आसक्ति बढ़ती जा रही है। यही आज दुःख का कारण बनता जा रहा है। दूसरों को सुखी देख दुखी होने की आसुरी वृत्ति दूसरों के दुःख में सुखी होने का अनुभव कराती है। त्रिवेणी के निकट श्री स्वामीनारायण आश्रम में आयोजित श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ के सातवें दिन भागवत तत्व के प्रवक्ता और स्वामी विद्यानंद सरस्वती महाराज ने भगवान श्रीकृष्ण की सखा लीला के विभिन्न प्रसंगों का वर्णन करते हुए कृष्ण प्रेम की व्याख्या की। स्वामीजी ने कहा कि ब्रह्म दर्शन से ही आनंद की अनुभूति होती है। ब्रह्म आनंद स्वरूप है, वैसे ही गोपियों को श्रीकृष्ण के दर्शन से परमात्मा की अनुभूति होती है। गोपियों का श्रीकृष्ण के प्रति अनासक्त प्रेम है और भगवान श्रीकृष्ण ने भी सखा और गोपियों को अपने प्रेम से पूरित किया। स्वामीजी ने कहा कि भक्त और भगवान का प्रेम दो से शुरू होता है पर खत्म एक पर होता है। कथा के आरंभ में विभाष उपाध्याय ने श्री अरविंद के महा ग्रंथ सावित्री से ली गई प्रार्थना की। भागवत ज्ञान यज्ञ के परीक्षित मधुसूदन श्रीवास्तव और श्यामसुंदर श्रीवास्तव ने लुधियाना पंजाब से आए स्वामी प्रज्ञानंद मुनि महाराज, चौबीसा जागीर के स्वामी नारायण आनंद महाराज, स्वामी प्रेमानंद महाराज का सम्मान किया।

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