करवा चौथ केवल एक परंपरा का मत और निर्वाहन यह प्रतीक है उस पावन और समर्पित सोच का जो एक स्त्री अपने परिवार के लिए अपने मन और जीवन में रखती है। तभी तो पूरी निष्ठा के साथ न केवल जीवनसाथी के आयु की, बल्कि परिवार के सुख-समृद्धि की भी कामना करती है। उसकी प्रार्थना यही भाव लिए होती है कि दाम्पत्य जीवन हर हाल में खुशियों से सराबोर रहे। हिंदू धर्म में करवा चौथ व्रत का विशिष्ट स्थान है। यह उन कठिन व्रतों में से एक है, जिसे विवाहित महिलाएं सारा दिन निर्जला रहकर पूरा करती हैं। इसमें पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ पूजन की कुछ विशिष्ट प्रतीकात्मक सामग्रियों का विशेष महत्व होता है। आइए जानते हैं इन प्रतीकात्मक चीजों के असल मायने क्या हैं।
गणेश जी का प्रतीक है करवा करवा का अर्थ है, मिट्टी का वह बर्तन जिसें अग्रपूज्य गणेश जी का स्वरूप माना गया है। भगवान गणेश जल तत्व के कारक हैं और करवा में लगी हुई टोटी गणेश जी की सूंड का प्रतीक मानी गई है। इस दिन मिट्टी के करवा में जल भरकर पूजा में रखना मंगलकारी माना गया है। एक और मान्यता के अनुसार करवा उस नदी का प्रतीक भी है, जिसमें मगरमच्छ ने मां करवा के पति को पकड़ लिया था। वहीं करचा माता की तस्वीर की पूजा की जाती है। तस्वीर में माता की छबि अंकित होती है। शक्ति को दर्शाती है सींक करवा चौथ व्रत की पूजा में सोंक का होना बहुत जरूरी होता है। ये सींक मां करवा की शक्ति का प्रतीक है। कथा के अनुसार मां करवा के पति का पैर मगरमच्छ ने पकड़ लिया था। तब उन्होंने कच्चे धागे से मगर को बांध दिया और यमराज के पास पहुंच गई। तब यमराज ने सात सींक लेकर उन्हें झाड़ना शुरू किया। ऐसे यमराज ने करवा माता के पति के प्राणों की रक्षा कर उन्हें दीर्घायु प्रदान की। दीपक से दूर होती है नकारात्मकता-शास्त्रों के अनुसार अग्नि पृथ्वी पर सूर्य का बदला हुआ रूप है। मान्यता है कि अग्निदेव को साक्षी मानकर उसकी मौजूदगी में की गई पूजा अवश्य सफल होती है। प्रकाश ज्ञान का प्रतीक भी है। ज्ञान प्राप्त होने से अज्ञान रूपी मनोविकार दूर होते हैं। दीपक जलाने से नकारात्मकता दूर होती है एवं पूजा में ध्यान केंद्रित होता है जिससे एकाग्रता बढ़ती है। मित्रो कल करवाचौथ है, सभी को इस पावन पर्व की बहुत बहुत अग्रिम शुभकामनाएं, आज हम आपको करवा चौथ की पौराणिक व्रत कथा बतायेंगे !!!!!!सुहागिन महिलाएं क्यों देखती हैं छलनी से पति का चेहरा?????भारतीय महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत रखती हैं इसलिए यह व्रत और इसकी पूजा काफी सतर्कता के साथ की जाती है। सुहागिन महिलाएं चांद को अर्घ्य देकर व्रत खोलती हैं। इस पूजा में प्रयोग होनेवाली हर चीज का अपना एक अलग महत्व है। आपको जानकर हैरानी होगी कि यह व्रत तब तक पूरा नहीं माना जाता है जब तक पत्नी छलनी से चांद और अपने पति का चेहरा ना देख लें।
आखिर क्या है कारण ?
सुहागन महिलाएं छलनी में पहले दीपक रखती हैं, फिर इसके बाद चांद को और फिर अपने पति को देखती हैं। इसके बाद पति अपनी पत्नी को पानी पिलाकर और मिठाई खिलाकर व्रत पूरा करवाते हैं। क्या कभी आपने सोचा है कि पहले चांद और फिर पति को छलनी से क्यों देखा जाता है। आइए जानते हैं कि छलनी के इस व्रत में क्या मायने हैं और इसके पीछे क्या कथा है…
पौराणिक कथाओं के अनुसार, वीरवती नाम की एक सुहागिन स्त्री थी। अपने भाईयों की वीरवती अकेली बहन होने के कारण उसके भाई बहुत प्रेम करते थे। करवा चौथ पर वीरवती ने निर्जल व्रत रखा और जिससे उसकी तबीयत खराब होने लगी। वीरवती की हालत उसके भाईयों से देखी नहीं जा रही थी। उनकी बहन की तबीयत खराब ना हो इसलिए उन्होंने एक योजना बनाई।उन्होंने तुंरत एक पेड़ की ओट में छलनी के पीछे जलता दिया रख दिया और अपनी बहन से कह दिया कि चांद निकल आया है तुम अपने व्रत खोल लो और जल्दी खाना खा लो। बहन ने झूठा चांद देखकर अर्घ्य दे देती है और खाना खाने बैठ जाती है। खाने का पहला टुकड़ा मुंह में डालने पर उसको छींक आ जाती है, दूसरे पर बाल बीच में आ जाता है और तीसरा खाने का टुकड़ा जब मुंह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार घर आ जाता है। उसकी भाभी सच्चाई से अवगत कराती हैं कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। वीरवती को जब पता चलता है तो फिर करवा चौथ का व्रत रखती है और सच्चे मन से अपनी गलती स्वीकार करती है और अपने पति की फिर जीवित होने की कामना करती है। इसके बाद वह छलनी से पहले चंद्रमा और उसके बाद अपने पति को देखती है। करवा चौथ माता उसकी यह मनोकामना पूरी करती हैं, इससे उसका पति फिर से वापस जीवित हो जाता है।
करवाचौथ की पौराणिक कथा!!!!!!!
बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहां तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी।
शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्य देकर ही खा सकती है। चूंकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है। सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चांद उदित हो रहा हो। इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चांद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चांद को देखती है, उसे अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ जाती है। वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बौखला जाती है। उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है। सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है। एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियां करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियां उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से ‘यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो’ ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है।
इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूंकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कह क र वह चली जाती है। सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है। इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है।
अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अंगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुंह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है। हे श्रीगणेश- मां गौरी जिस प्रकार करवा को चिर सुहागन का वरदान आपसे मिला है, वैसा ही सब सुहागिनों को मिले।