केवल भगवत संकीर्तन से अपनी मृत्यु को सुधारा जा सकता है – स्वामीजी विद्यानंद सरस्वती जी ने भागवत कथा के अंतिम दिवस स्वामीनारायण आश्रम तस्विक व्याख्या की।

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उज्जैन मृत्यु भय और शोक से मुक्त कर अपने आत्म स्वरूप का बोध श्रीमद् भागवत करवाती है और यही इसका सार तत्व है। भागवत प्रवक्ता व श्री सद्गुरु धाम बरूमल के पीठाधीश्वर स्वामी विद्यानंद सरस्वती ने शुकदेव द्वारा राजा परीक्षित को दिए अंतिम उपदेश की व्याख्या करते हुए यह बात कही। स्वामीजी ने कहा कि जीव नित्य, शुद्ध, बुद्ध और आत्म स्वरूप है। इसकी न तो मृत्यु होती है, न ही जन्म होता है। वह शरीर नहीं है, उसका साक्षी है। त्रिवेणी के समीप श्री स्वामीनारायण आश्रम में आयोजित किए जा रहे नौ दिवसीय भागवत ज्ञान यज्ञ की गुरुवार को पूर्णाहुति हुई। स्वामीजी ने श्रीकृष्ण की उत्तर लीला के प्रसंगों की तात्विक व्याख्या की। श्रीकृष्ण सुदामा प्रसंग में भगवान श्रीकृष्ण ने मैत्री का संदेश दिया। उन्होंने भागवत के श्लोकों के आधार पर कलयुग के लक्षण बताते हुए कहा कि इसी युग में अर्थ की प्रधानता है, आयु, बल, स्मृति क्षीण हो जाएगी। अधर्म की प्रवृत्ति बढ़ती जाएगी। उन्होंने कहा कि इस युग में केवल भगवत संकीर्तन से अपनी मृत्यु को सुधारा सकता है।

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