कर्मो की सजा लोगों को मिलने वाली है, गलत रास्ते पर जा रहे, भटक रहे, अकाल मृत्यु की तरफ बढ़ रहे, आगाह करो बचाओ* *विषय वासनाओं की तरफ से मन को हटाओ, भजन में लगो नहीं तो जीवात्मा फंस जाएगी बिना दिखावे की भक्ति करनी चाहिए

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ग्वालियर (म.प्र)
निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 8 नवंबर 2022 प्रातः ग्वालियर में दिए व अधिकृत यूट्यूब यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि गुरु के आदेश के पालन को गुरु भक्ति कहते हैं। ये दो तरह की- आंतरिक और बाह्य।
*बाह्य भक्ति किसको कहते है*
बाहर से जो काम हो सकते हैं, सौंपते, करवाते हैं, वह बाह्य भक्ति होती है। जैसे इस शरीर के मुंह से आवाज निकली सफाई कर दो, पानी भर लाओ, भंडारे में रोटी बनाकर के प्रेमियों को खिला दो आदि।
*लोग भटक रहे हैं, गलत रास्ते पर जा रहे हैं, उनको आगाह करो बचाओ*
खंदक है देख नहीं पाएंगे, गिर जाएंगे, सैकड़ों हजारों फीट नीचे, पताल लोक में चले जाएंगे। उनको बचाओ, आगाह करो कि देखो भाई चमक-दमक को मत देखो। ये मत देखो कि मक्खन मलाई वाली रोड है, तुम आगे बढ़ते चले जाओ। अरे रोड कटी हुई है, खत्म हो रही है। इसी तरह से अगर बढ़ते चले जाओगे, समझोगे जानोगे नहीं तो गड्ढे में गिर जाओगे। बचो। यह है बाह्य आदेश।
*लोग अकाल मृत्यु की तरफ लोग बढ़ रहे हैं*
बिना समय पूरा किये हुए मरना अकाल मृत्यु कहलाती है। तब प्रेत योनि में चला जाता है। बहुत समय तक उसको प्रेत योनि में रहना पड़ता है क्योंकि कर्मों की सजा सबको मिलती है। प्रेतों के कर्म कोई अच्छे तो होते नहीं हैं। भूख लगती है तो लोगों को दबाते परेशान करते हैं। जब परेशान करते हैं तो उनका दिल दु:खी होता है तो उनके बुरे ही कर्म बनते हैं, कर्मों की सजा मिलती है।
*कर्म अच्छे रहे तो सतगुरु मिल जाते हैं नहीं तो जीव फंस जाता है*
जैसे कैदी जेल से जबरदस्ती बाहर निकलने की कोशिश किया, जेल के रखवाले से लड़ाई झगड़ा कर लिया तो उसकी सजा और बढ़ जाती है। ऐसे ही इन प्रेतों की सजा बढ़ती चली जाती है। बहुत दिनों तक उसमें रहना पड़ता है। उसके बाद जब प्रेत योनि से छुटकारा होता है तब वह फिर मनुष्य योनि में आकर बचे हुये समय तक जीता है फिर कर्मों की सजा उसको मिलती है। अगर कर्म अच्छे रहे तो मनुष्य शरीर, सतगुरु मिल गए, रास्ता मिल गया, भजन किया तो निकल जाता है नहीं तो फंस जाता है।
*लोगों को यह ज्ञान नहीं है कि हमारे कर्म खराब हो रहे हैं*
अज्ञानता में, जबान के स्वाद, ऐश आराम के लिए लोग जीव हत्या कर डालते हैं। अपने शरीर को सुख पहुंचाने के लिए दूसरे को दु:ख दे देते हैं। यह क्या है? पाप बन रहा है। कहते हैं पाप का घड़ा भरने पर फूटता है। जैसे भरने के बाद पानी छलकेगा, बाहर निकलेगा, गंदगी कीचड़ सड़न पैदा करेगा, हवा को दूषित करेगा। जब दस लोगों की नजर जाएगी कि रास्ता ही अब खराब कर दे रहा है तो क्या करेंगे? वह पानी डालने वाले को ही सजा देंगे कि नहीं देंगे? देंगे।

*सजा लोगों को मिलने वाली है, उससे लोगों को बचाना है*

मतलब यह है कि गुरु महाराज ने शाकाहारी का संदेश देने के लिए कहा, सतयुग लाने का आव्हान किया, भूले भटकों को रास्ता बताने के लिए कहा। उसको करो, करना चाहिए तब आपके कर्म कटेंगे।

*आंतरिक भक्ति किसको कहते हैं*

जो गुरु महाराज ने नाम की कमाई करने के लिए कहा उस नाम की करो कमाई।
*मन तू भजौ गुरु का नाम*
माता-पिता द्वारा गुरु के शरीर के रखे नाम को नहीं बल्कि गुरु द्वारा (नामदान/दीक्षा में) दिए नाम को भजो।
*गुरु ने मोहे दीन्हीं अजब जड़ी*
जो उन्होंने नाम रूपी जड़ी दिया, वह चीज दिया। देखो दूध ,पानी पतला होता है लेकिन ठोस चीज क्या है जैसे पत्थर। ऐसे ही गुरु ने जो ठोस दिया उस नाम की करो कमाई। भजो यानी भगो, दुनिया की तरफ से भाग करके, उस नाम की डोर को पकड़ कर के ऊपर की तरफ जाओ, सुमिरन ध्यान भजन करो। यह आंतरिक भक्ति है। भक्ति अगर नहीं करोगे तो-
*बिन गुरु भक्ति नाम में पचते, सो प्राणी मूरख जान।*
*शब्द खुलेगा गुरु मेहर से, खींचे सुरत गुरु बलवान।।*
गुरु की जब दया होगी वो शब्द की डोर को खीचेंगे तब सुरत ऊपर की ओर चढेगी तो गुरु की दया लेना बहुत जरूरी होता है। कहा है-

*विषय वासनाओं की तरफ से मन को हटाओ, भजन में लगो नहीं तो जीवात्मा फंस जाएगी*

कबीर गुरु की भक्ति कर, तज बिषया की चोट।
विषय वासनाओं में यह मन फंसा हुआ है। विषय वासना यानी आंख से देखना, कान से सुनना, जुबान का, इंद्री का स्वाद लेना आदि यह विषय वासनाओं में आता है। विषय वासना देखकर, सुनकर, स्पर्श से पैदा होती हैं। तो इनकी चोट है, चकाचौंध है, इससे अलग होवो। इसको तज करके भजन में लगो नहीं तो यह जीवात्मा फंस जाएगी। मतलब भक्ति प्रमुख चीज होती है। गुरु की भक्ति करो, आदेश का पालन करो। बिना दिखावे की भक्ति करनी चाहिए।

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