उज्जैन भारतीय राष्ट्रीय कैलेण्डर भारत की पहचान की एक वैज्ञानिक अभिव्यक्ति है ओर इसे सन 1957 में हमारी संसद द्वारा संवैधानिक रुप से अपनाया गया था यह जानकारी विक्रम विश्वविद्यालय पर मिडिया को पत्रकार वार्ता में बताया इस

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‘भारतीय राष्ट्रीय कैलेंडर’, भारत की पहचान की एक वैज्ञानिक अभिव्यक्ति है और इसे 1957 में हमारी संसद द्वारा संवैधानिक रूप से अपनाया गया था। यह स्वतंत्रता प्राप्त करने के तुरंत बाद हमारी पहचान को बहाल करने का एक स्पष्ट संकेत था। हालांकि, अफसोस की बात है कि यह लोगों के मानस में किसी का ध्यान आकर्षित नहीं कर पाया। ‘आजादी का अमृत महोत्सव के अवसर पर विज्ञान भारती, संस्कृति मंत्रालय, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद, मध्य प्रदेश विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद, IUCAA पुणे, 117. बैंगलूरु 117 इंदौर विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन, महर्षि पाणिनि संस्कृत विश्वविद्यालय उज्जैन, राष्ट्रीय दर्शक प्रचार मंच औरंगाबाद जैसे कई अन्य वैज्ञानिक, शैक्षणिक व सामाजिक संस्थाओं के सहयोग से भारतीय राष्ट्रीय दिनदर्शिका के क्रांतिकारी कदम को राष्ट्रीय स्तर पर मनाना चाहते हैं। इस उद्देश्य के लिए भारत के राष्ट्रीय कैलेंडर पर विदिवसीय संगोष्ठी और प्रदर्शनी वैशाख 2 और 3, 1944 (22-23 अप्रैल, 2022) को उज्जैन और डोंगला (वर्क रेखा पर एक जगह) में निर्धारित की गई है। सम्मेलन को बढ़ावा देने और लोकप्रिय बनाने के लिए आयोजकों ने हग कार्यक्रम के पूर्ववर्ती छह कर्टेनरेजर भी किए हैं जो सौएसआईआर-एनपीएल, नई दिल्ली में चैत्र 01, 1944 (22 मार्च 2022) को इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्टोफिजिक्स, बेंगलुरु में चैत्र 08, 1944 (29 मार्च 2022) एस. एन. बोस नेशनल रॉटर फॉर बेसिक साइंसेज, कोलकाता में चैत्र 15, 1944 (05 अप्रैल 2022) आईआईटी, गुवाहाटी में चैत्र 16, 1944 (06 अप्रैल 2022) मुंबई विश्वविद्यालय, मुंबई में चैत्र 21. 1944 (11 अप्रैल 2022) और जम्मू केंद्रीय विश्वविद्यालय, जम्मू में चैत्र 22, 1944 (12 अप्रैल 2022) को आयोजित किए गए हैं।
आयोजन समिति द्वारा बताया गया कि आधुनिक विचार के नाम पर सदियों के औपनिवेशिक शासन के दौरान भारतीय विचार के स्वदेशी ज्ञान को वैज्ञानिक और सांस्कृतिक रूप से दबा दिया गया था। स्वतंत्रता के बाद भारत ने राष्ट्रीय पक्षी, राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रीय फूल आदि जैसी कई राष्ट्रीय पहचानों को परिभाषित करना शुरु कर दिया, इसी तर्ज पर राष्ट्र एक राष्ट्रीय कैलेंडर के साथ आया, जिसे भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर’ कहा जाता है। कैलेंडर सुधार समिति द्वारा डर तैयार किया गया था जिसमें डॉ० नेपनाद साहा (अध्यक्ष), प्रो० एन सी लाहिरी (सचिव), प्रो० ए सी बनर्जी, डॉ० के एल दफ्तारी, श्री जे एस करंदीकर, प्रो० आर वी वैदय, पंडित गोरख प्रसाद शामिल थे। खगोल विज्ञान की दृढ़ नींव पर डा कैलेंडर 1957 में संसद के एक अधिनियम के माध्यम से पारित किया गया था और 22 मार्च, 1957 से लागू दिया गया था और इसे चैत्र 01, 1875 के रूप में लागू किया गया था। वर्तमान में हम वर्ष 1944 में हैं। सबसे औरक कैलेंडर होने के नाते विश्व में भारत का राष्ट्रीय कलैण्डर हमारे स्वाभिमान और आत्मविश्वास की पहचान है।

वैज्ञानिक स्तंभों पर निर्मित भारतीय राष्ट्रीय दिनदर्शिका को अधिक से अधिक प्रचलन में लाने का प्रयास इस आयोजन के माध्यम से किया जा रहा है। इसी कड़ी में राष्ट्रीय पंचांग (शक संवत) के वैज्ञानिक पहलुओं पर मंथन करने के लिए 22 व 23 अप्रैल को देशभर के पंचांगकर्ता, खगोल विज्ञानी और विद्वान धर्मनगरी उज्जैन में जुटेंगे। इस दौरान आयोजकों द्वारा कार्यक्रम की विषयवस्तु से संबंधित एक प्रदर्शनी भी लगाई जाएगी।

प्रेस वार्ता के दौरान आयोजन समिति की ओर से मध्यप्रदेश विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद के डायरेक्टर जनरल प्रो० अनिल कोठारी, प्रो० अखिलेश पाण्डेय (कुलपति विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन), डॉ० दिलीप सोनी (कुलसचिव महर्षि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय), प्रो० प्रमोद वर्मा (अध्यक्ष विज्ञान भारती मालवा प्रात), डॉ० अरविंद सी रानाडे (वैज्ञानिक एफ, DST विज्ञान प्रसार) मौजूद रहे।

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