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धर्म नगरी उज्जैन को एक और भव्य श्री अष्टविनायक मंदिर की स्थापना एवं प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव को लेकर पं. हेमंत व्यास ने हाटकेश्वर विहार में पत्रकारों. को जानकारी देते हुए बताया

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उज्जैन वैशाख शुक्ल अष्टमी 5 मई सोमवार पांच दिवसीय अष्टविनायक प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव एवं श्री गणेश महायज्ञ मुख्य अतिथि मुख्यमंत्री मध्य प्रदेश शासन डॉक्टर मोहन यादव जी एवं   महामंडलेश्वर एवं संतो के सानिध्य में संपन्न होगा  श्री अष्टविनायक संकल्प और सिद्धि श्री गणेश देवाधिदेव महादेव शिव और भगवती गिरिजा के पुत्र हैं। देवसेनापति कार्तिकेय के प्रिय बन्धु तथा ऋद्धि और सिद्धि के स्वामी हैं। योग और क्षेम के पिता होकर सारी सृष्टि के कर्ता होकर इसभर्ता और हर्ता भी हैं। मानो सारा संसार उन्हीं से अभिव्यक्त है, उन्हीं में समाहित है और उन्हीं में लीन होकर विराम पाता है। जो उनका शरणागत होता है उसके जीवन के चारों आश्रम ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास सार्थक होते हैं तथा जीवन के चारों पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष सिद्ध हो जाते है।तीर्थनगरी उज्जैन में नवनिर्मित श्री क्षेत्र अष्टविनायक धाम इन्हीं महिमावान महादेव मंगलमूर्ति श्री गणेश को समर्पित एक अभिनव मंदिर है। पुण्यसलिला शिप्रा तट के समीप स्थापित यह श्री अष्टविनायक धाम उज्जैन निवासी आयुर्वेदाचार्य श्री चंद्रकांत व्यास व उनकी जीवनसंगिनी श्रीमती सुशीलादेवी व्यास के आशीर्वाद की साकार सृष्टि है जिसे उनके तीन पुत्रों हेमन्त व्यास, संजय व्यास और शैलेन्द्र व्यास ने अपने संकल्प और गणेश कृपा से सिद्ध किया है। मध्यप्रदेश के देवास जिले की सोनकच्छ तहसील के एक छोटे से गाँव के मूल निवासी इस मध्यमवर्गीय ब्राह्मण परिवार पर गणेशजी की कृपा बरसी तो धर्मालु माता-पिता के धार्मिक संस्कारों में पले-बढे तीनों बेटों ने अष्टविनायक धाम की स्थापना का संकल्प लिया। अपने श्रम और व्यवसाय कौशल से अर्जित धन गणेश सेवा में समर्पित कर तीनों ने संकल्पपूर्वक सात बीघा भूमि में इस सुंदर धाम का स्वप्न देखा और सात वर्ष अनथक कर्मरत रहते हुए अंततः इसे साकार कर दिया। अब यह गणेशजी का घर है और लोक के मङ्गल को सुनिश्चित करने का धाम है।इस धाम की परिकल्पना के केंद्र में भारत के महाराष्ट्र राज्य के प्रसिद्ध अष्टविनायक हैं, जिनकी कृपा और कीर्ति विश्वव्यापी है। इन्हीं अष्टविनायक के स्वरूप एक ही भव्य मंदिर में अब इस धाम में दर्शनार्थ सुलभ है। विशाल परिसर में स्थित और पारंपरिक भारतीय मंदिर स्थापत्यकला के अनुरूप निर्मित देवालय में मुख्य शिखर के अतिरिक्त आठ उप-शिखरों का निर्माण कर अष्टविनायक के मङ्गल विग्रह स्थापित किए गए हैं। मध्य में भगवान श्री गणेश की विशाल और सुंदर प्रतिमा है जिनके साथ देवी ऋद्धि-सिद्धि भी विराजमान हैं। मुख्य मंदिर में प्रवेश के लिए भव्य द्वार है और नक्काशीदार मंडप से एक ही स्थान पर स्थिर रहकर अष्टविनायक के सभी आठों स्वरूप का दर्शन करने की अकल्पनीय सुविधा है। जो भक्तों को गणेश कृपा का प्रत्यक्ष साक्षात्कार कराने में समर्थ है। मंदिर से सटा परिक्रमा पथ भगवान की परिक्रमा के लिए है। जिसे करने के बाद जन्म-मरण के संसार चक्र से मुक्ति तय है।

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