उज्जैन हाथों में तेरा आंचल आया तो बाहर आई… दीवाना हुआ बादल, मुत्री बदनाम हुई, म्हारा रोहड़ा सा… जैसे गीत। संस्कृत के श्लोक, राजा भर्तृहरि की कहानी, संगीत की स्वर लहरियां।
यह सब एक साथ पहली बार गुरुवार रात टावर चौक पर दिखाई, सुनाई दिया। अवसर था उज्जयिनी अंताक्षरी का। ख्यात अभिनेता डॉ. अनू कपूर के सानिध्य में हुए आयोजन में श्रोता खुद को शामिल होने से रोक नहीं पाए।अन्नू कपूर का कहना है भारतीय परंपरा में अंताक्षरी एक लोकप्रिय पारंपरिक खेल है, जो मुख्य रूप से गीतों, श्लोकों या कविताओं के माध्यम से खेला जाता है। यह खेल भारत की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है। प्राचीन समय में इसे संस्कृतश्लोकों के रूप में भी खेला जाता था। अंताक्षरी न केवल मनोरंजन का एक साधन है, बल्कि यह भारतीय संगीत, भाषा और संस्कृति को जीवंत बनाए रखने का एक तरीका भी है। यह परंपरा आज भी हर पीढ़ी के बीच उतनी ही लोकप्रिय है, जितनी पहले थी। भक्ति काव्य धाराओं में अंताक्षरी के मिलते हैं तत्व अभिनेता का मानना है कि अंताक्षरी का इतिहास भारतीय लोक-संस्कृति और काव्य-परंपरा से गहराई से जुड़ा हुआ है। यह खेल विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं और बोलियों जैसे मालूवी, अवधि, ब्रज, हाड़ौती आदि में प्रचलित रहा है। अंताक्षरी की परंपरा मौखिक कविता-संस्कृति का हिस्सा रही है, जिसमें लोग तुकबंदी और छंदबद्ध गीतों के माध्यम से संवाद करते थे। प्राचीन भारत में मौखिक परंपरा बहुत मजबूत थी और यह वेदों के समय से चली आ रही थी। लोकगीतों और धार्मिक भजनों के माध्यम से अंताक्षरी की शैली विकसित हुई। कृष्ण भक्ति और राम भक्ति काव्य धाराओं में अंताक्षरी के तत्व मिलते हैं।
2025-03-14