सीएम बोलें साधु-संतों के समन्वय से ही होगा सिंहस्थ, शिप्रा गहरीकरण व घाट विस्तार करेंगे स्थायी निर्माण कि अनुमती पर भोपाल में अखाडा परिषद उज्जैन ने मुख्यमंत्री का किया अभिनंदन, साधु-संतों ने मेला क्षेत्र के निर्माण कार्य शीघ्रता से कराने कि उठाई मांग

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उज्जैन। हरिद्वार कि तर्ज पर उज्जैन में भी सिंहस्थ मेला क्षेत्र में अखाडों, साधु-संतों के आश्रमों, मठों मे स्थायी निर्माण कि अनुमती देने के निर्णय पर स्थानीय अखाडा परिषद द्वारा भोपाल में मुख्यमंत्री डाॅ मोहन यादव का अभिनंदन किया। शाॅल-श्रीफल के साथ उन्हें गोल्ड प्लेटेड मयूर आकृति का आकर्षक स्मृति चिन्ह भेंट किया। यहां चर्चा दौरान संतों ने कहां की स्थानीय प्रशासनिक अधिकारी खुद ही कई निर्णय कर लेते है, जबकी पहले संतो से सलाह-सुझाव लेना चाहिए। इस पर सीएम बोलें आगे से संतों के समन्वय-तालमैल से ही सिंहस्थ संबंधी निर्णय होंगे। करीब आधे घंटे तक सीएम-संतों के बीच सिंहस्थ को लेकर बातचीत हुई, जिसमें मुख्य रुप से शिप्रा नदी गहरीकरण, घाटों के विस्तार, मेला क्षेत्र के कार्य शीघ्रता से पूर्ण करने जैसी चर्चा रहीं। इसके उपरांत सीएम ने संतों के साथ सहभोज किया एवं शाॅल-श्रीफल भेंट कर सभी से आर्शीवाद लिया। स्थानीय अखाडा परिषद के नवनिर्वाचित अध्यक्ष महंत डाॅ रामेश्वर दास, महामंत्री महंत रामेश्वरगिरी महाराज कि अगुवाई में स्थानीय संत समाज ने भोपाल में सीएम का अभिनंदन किया और उनका आभार माना। साथ ही अपेक्षा रखी कि पिछली बार आश्रमों में निर्माण कार्य विलंब से शुरु होने में वे अधूरे रह गए थे, इस बार ऐसा नहीं हो। इस पर सीएम बोलें हमनें अभी से ही अधिकारियों को तेजी से काम कराने का बोल दिया है। सभी बाहरी मार्ग सहित मेला क्षेत्र की सडकें फोरलेन हो रही है, आंतरिक मार्ग चैडीकरण, रेलवे कनेक्टिविटी सहित सभी काम पर हमारा फोकस है। इस दौरान महंत आनंदपुरी महाराज, जूना अखाडा, बडा उदासीन से महंत सत्यानंद, निर्मोही से महंत भगवानदास जी, महानिर्वाणी से महंत श्यामगिरी जी, महंत राजीवदास, महंत सेवागिरी जी, आव्हान से रामेश्वरगिरी जी, समुंदर गिरी जी, निरंजनी से सुरेशानंदपूरी जी, अग्नि अखाडें के कृष्णानंद ब्रहम्चारी, रमेशानंद ब्रहम्चारी, नया उदासीन के मंगलदार महाराज, महंत विशालदास, महंत राघवेंद्रदास, रामनुजकोट के माधव प्रपन्नाचार्य, महंत सहदेवानंद गिरी, महंत देवगिरी, आचार्य गौरव सहित स्थानीय अखाडा परिषद प्रबंधक गोविंद सोलंकी, समन्वयक डाॅ राहुल कटारिया सहित अन्य लोग उपस्थित रहे। संतों ने सीएम से रखी यह प्रमुख मांगें मुख्य रूप से दो भाग पहला मंगलनाथ क्षेत्र एवं दुसरा दत्त अखाड़ा क्षेत्र, मंगलनाथ क्षेत्र में वैष्णव संप्रदाय के रामानंदाचार्य द्वार एवं शैव संप्रदाय में शंकराचार्य द्वार का निर्माण तथा उदासीन संप्रदाय के इष्ट देव आचार्य श्री चंद्रदेव द्वार का निर्माण रामानुजकोट पर होना चाहीये- देवास की फेक्ट्रीयों का जहरीला पानी गदईपीपलीया गांव के पास क्षिप्रा में मिलता है इससे क्षिप्रा प्रदुषित हो रही है इस पानी को तत्काल बंद किया जावे। यहां जहरीले पानी से जलचर जीव मर रहे है।-शहर में मौजुद सप्त सागरों के सीमांकन गहरीकरण सैदर्यीकरण के साथ ही इन्हें अतिक्रमण से मुक्त किया जाना चाहीये प्रत्येक तालाब 25 फीट का पक्का कुआ भी बनाना चाहीये ताकि उसके स्वच्छ जल से पुरूषोत्तम मास में पूजा पाठ हो सके।शहर के दो लघु पौराणिक तालाब गयाकोठा व नीलगंगा का गहरी व सौंदर्यीकरण हो। नीलगंगा को अंजनी सरोवर भी कहा जाता है, यहां अंजनी माता की मुर्ति स्थापित हो। साथ ही उज्जैन में चारो दिशाओं में भव्य धार्मिक द्वार बनाना चाहिए।
-84 महादेव मंदिरों के जिर्णोद्धार, जो मंदिर निजी भूमि में स्थित है वहां आधा बीघा जमीन अधिग्रहित कर वहां एक शेड व हैंडपंप स्थापित हो ताकि श्रावण मास में श्रद्धालु पूजन अभिषेक कर सके एवं मंदिर पहुंच मार्ग पक्के हो। शहर के मध्य पुष्कर सागर को अतिक्रमण से मुक्त करवाया जावे इस सागर की 3.5 बीघा जमीन अधिकृत है। रामादल के संतों की पेशवाई मार्ग जो कि खाकचैक से प्रारंभ होता है, जो शहर के आंतरिक मार्गो से होकर रामघाट पहुंचता है। साथ ही सिंहस्थ पडाव स्थल नीलगंगा से शैव अखाडों की पेशवाई का मार्ग, इन समूचें मार्ग का चैड़ीकरण किया जाना अति आवश्यक है। उज्जैन के कई साधु संत ऐसें भी है जिनके पास मात्र एक बीघा ही जमीन हैं, अतः इन्हें भी पक्के निर्माण की अनुमति दी जाना चाहिये। उज्जैन के सभी स्थान धारी संतों के आश्रमों में कम से कम 50-50 लाख की लागत के निर्माण व ट्यूबवेल खनन कार्य कराये जाएं। गउघाट के घाट को बड़ा कर लालपुल घाट तक ले जाया जावे यह कार्य अभी से प्रारंभ किया जावे। चूंकि गउघाट से लालपुल के मध्य सिंधिया परिवार की महिलाऐं स्नान करती है। – त्रिवेणी से कालियादेह महल तक क्षिप्रा नदी का गहरीकरण हो ताकि सिंहस्थ के दौरान पर्याप्त जल की आपुर्ति बनी रहे समस्त घाटों पर ट्यूबवेल लगाकर क्षिप्रा में जल छोड़ा जावे ताकि क्षिप्रा के जल से ही स्नान हो।

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