श्रीमद्भागवत कथा • हजारों लोगों की मौजूदगी में श्री हरि के गुणगान की शुरुआत, कलश यात्रा निकाली जो उसके हिसाब से होता है, वह अच्छा होता है – जया किशोरी

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उज्जैन कथास्थल पर रविवार को श्रीमद्भागवत कथा में यह बात कही। उन्होंने कहा कि भगवान ने तो हमारी कीमती कुछ है तो वह है शुकदेवजी के अवतार की कथा जया किशोरीजी। नि:स्वार्थ प्रेम
हामूखेड़ी स्थित आरके ड्रीम्स में श्रीमद्भागवत कथा का रसपान करते धर्मप्रेमी, व्यासपीठ से कथा सुनाती
जिसकी जो तकदीर है, उसे उतना ही मिलता है महादेवजी के महल की कथा के बारे में उन्होंने कहा कि
जिंदगी जन्म के साथ ही तय कर दी है। अब यह हमारे ऊपर है कि हम उसे हंस कर जिये या रोकर। महाभारत का जिक्र करते हुए किशोरीजी ने कहा कि एक बार भगवान कृष्ण और कर्ण के बीच बातचीत में कर्ण कहते हैं कि मेरी जिंदगी में इतना गलत हुआ है तो दुर्योधन का साथ कैसे गलत हुआ। तब भगवान कहते हैं कि मेरे जन्म लेने के पहले ही मेरी मृत्यु खड़ी थी। माता-पिता से अलग हुआ। गोकुल में
जब हम ऐसा मानते लगते हैं कि ऐसा होगा, वैसा होगा और हमारे हिसाब से नहीं होता है तो हम दुखी होते हैं लेकिन वो जो करता है वह अच्छा करता है। जीवन है तो दुख और परेशानियां तो आएंगी ही। भगवान ने भी दुख और परेशानियां झेली। सुख-दुख तो जीवन में चलेगा ही। हमें सिर्फ भगवान की शरण में जाने की देर है। जैसे ही हम भगवान की शरण में जाते हैं, कृपा अपने आप होने लगती है।
ऐसा बार ब्रह्माजी सुनाते हुए किशोरीजी ने कहा कि एक ने एक सभा का आयोजन किया। उसमें सभी देवी-देवता, यक्ष, गंवर्ध, किन्नर आए। । तब प्रश्न उठा कि तीन लोक, 14 भुवन में सबसे कीमती वस्तु क्या है है। सभी अपने-अपने स्तर पर उत्तर दे रहे थे। कोई हीरा को कीमती बता रहा था, तो कोई स्वर्ण तो कोई चांदी को। वहां ऋषिमुनि भी बैठे थे। उन्होंने पूछा कि यह तो कई लोगों के पास है। फ्रि यह कीमती कैसे। कीमती तो वह जो हर किसी नहीं होती। जो दुर्लभ है। तब यह बात सामने आई कि सबसे कीमती है तातो है प्रेम। निःस्वार्थ प्रेम। भगवान जो हमसे करते हैं निःस्वार्थ प्रेम है। हम तो भगवान से भी स्वार्थ का प्रेम करते हो हम वह इस स्वार्थ या है कि भगवान हमारा एक काम न करे तो हम भगवान बदल देते हैं। हमारे पास ऐसा कुछ नहीं है जो भगवान को दे सकते हैं। फिर भी वो हमारी सहायता करते ते हैं। हैं।। हमसे प्रेम करते हैं। गजेंद्र ने मध्यरात्रि में भगवान विष्णु को पुकारा तो वे मध्यरात्रि में लक्ष्मी को छोड़ भाग गए।
एक बार पार्वतीजी ने कहा कि मुझे भी महल चाहिए। मुझे पर्वत पर नहीं रहना। भोले बाबा समझाते हैं कि महल की क्या जरूरत है। तब पार्वती जिद पर अड़ उ जाती हैं कि उन्हें तो महल चाहिए ही, वह भी उनके हिसाब से। महल होना चाहिए कि देखने वाला देखता रह जाए। सोने का महल बनाया। पार्वती ने लक्ष्मी को गृह प्रवेश में बुलाया। रावण के पिताजी विश्रर्वा गृहप्रवेश करवाने के लिए आए। गृह प्रवेश की पूजा हुई। दक्षिणा के लिए भोलेबाबा ने विश्ववां से पूछा क्या चाहिए। तब विश्रवां ने कहा कि सुंदर बना है, इसे दान में दे दो। महादेवजी ने तथास्तु कह दिया। वह सोने का महल ही सोने की लंका बनी, जिसे रावण के पिता ने भगवान भोलेनाथ से दान में लिया था। जिसकी जो तकदीर है, उसे बस उतना ही मिलता है।
मेरा मन रमा ही था कि मथुरा ले आए। फिर गुरुकुल भेजा। फिर राज्य संभाला। महाभारत किया। जरासंघ को मारा। हर वक्त लोग मेरे पीछे लगे रहे। मेरे साथ इतना गलत हुआ तो क्या मुझे गलत करने की आजादी मिल गई। हमारे साथ यदि गलत हुआ है तो हमारी जिम्दारी बढ़ जाती है कि अब हम दूसरों साथ गलत न होने दें। सिर्फ हालात बरे होने में गलत रास्ते पर लगे भगवान का साथ महल भगवान नहीं देता। भगवान आनंद है। जो भगवान के साथ है यह असली आनंद के साथ है।
आरके डेवलपर्स के राकेश मनीषा अग्रवाल द्वारा मां की स्मृति में कथा आयोजित की जा रही हैं। यहां बने पांडाल में 40 हजार लोगों के बैठने की व्यवस्था है। कथा 25 नवंबर तक चलेगी। शहर में पहली बार जया किशोरी की भागवत कथा हो रही है। सोमवार को शंकर-पार्वती के विवाह का प्रसंग सुनाया जाएगा। प्रारंभ होने के पूर्व हामुखेड़ी से कलश यात्रा निकाली गई। कथा के दौरान उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव भी उपस्थित थे। कथावाचिका जया किशोरी

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