*पत्रकार वो भूमिका अदा करें जिससे जनता खुशहाल हो सके*बाबा उमाकान्त जी महाराज द्वारा बाबा जयगुरुदेव आश्रम उज्जैन में पत्रकारों का सम्मान*

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उज्जैन निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, बाबा उमाकान्त जी महाराज के तत्वावधान में बाबा जयगुरुदेव जी के ग्यारहवें वार्षिक मार्गदर्शक भंडारे के अंतर्गत बाबा जयगुरुदेव शब्द योग विकास संस्था द्वारा उज्जैन के पत्रकारों के सम्मान एवं भोज का आयोजन पिंगलेश्वर स्थित बाबा जयगुरुदेव आश्रम में किया गया। इस अवसर पर प्रेस क्लब के अध्यक्ष श्री विशाल हाड़ा, श्री अर्जुन सिंह चंदेल, श्री शैलेन्द्र कुल्मी जी विशेष रूप से मौजूद रहे। साथ ही उज्जैन के अनेकों प्रिंट, टीवी एवं डिजिटल मीडिया के पत्रकार बंधु उपस्थित रहे। इस अवसर पर प्रेस क्लब अध्यक्षों द्वारा महाराज जी द्वारा आयोजित इस सम्मान समारोह की सराहना कर धन्यवाद ज्ञापित किया गया।
*पत्रकारों की भूमिका*
गुरु महाराज बाबा जयगुरुदेव पत्रकारों को पुरोहित कहते थे। जो लोगों की समस्याओं को सुलझाने का काम करते, जनता का समाचार खबर जो जनता के बीच में नहीं पहुंच पाती, उन तक पहुंचाने का काम जो करते हैं, उनको पुरोहित कहते हैं। इस वक्त पर मैं यह देख रहा हूं कि जहां तक दुनिया की बुद्धि फेल हो जाती है वहां तक पत्रकारों की पहुंच होती है। आप लोगों को पूरा अध्ययन है। शुरू से लेकर के सारी जानकारी देश की रहती है। आपको कुछ बताने याद दिलाने की जरूरत नहीं है। आप लोगों से हमारी यही प्रार्थना है कि देश की जनता जिस तरह से भी खुशहाल हो, वह भूमिका आप लोगों को अदा करनी चाहिए। आप लोग ऐसे हो कि जमीन से लेकर आसमान तक पहुंचने वालों में से हैं। कहने का मतलब यह है कि एक गरीब जनता के गरीबी का भी अनुभव आप लोग करते हैं और अमीर लोगों का भी अनुभव आप करते हैं। हम तो आप लोगों से यही प्रार्थना करेंगे कि अनुभव के आधार पर, कि किस तरह से लोगों की समस्याएं दूर की जाएं, किस तरह से घर-घर की बीमारियां खत्म की जाए, घर-घर का लड़ाई-झगड़ा खत्म कर दिया जाए, जो बरकत नहीं हो रही है, वह बरकत कैसे लोगों को दिलाया जाए। नियम कानून के अंतर्गत भी लोग काम नहीं कर पा रहे हैं। उसमें कैसे संशोधन किया जाए, इस विषय पर चिंतन करने की आवश्यकता है। हम तो केवल निवेदन कर सकते हैं, आदेश नहीं।
*देशभक्ति कैसे आएगी*
दो क्षेत्र रहते हैं- आध्यात्मिक और भौतिक। इनमें जो देश तरक्की कर जाता है, उस देश के लोग आगे बढ़ जाते हैं, वही लोग पूज्य हो जाते हैं। भारत ऐसा देश है, इसकी महिमा और गरिमा पूरे विश्व में फैली हुई है। अध्यात्म की जो पावर शक्ति विद्या पूरे विश्व में फैली है। उस शक्ति के बल पर लोग धनी मानी विद्वान वैज्ञानिक बने कि हम चांद पर पहुंच गए, अपने को मजबूत कर रहे हैं। सब कुछ होते हुए भी वह शक्ति कला धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही हैं। इस पर भी आज विचार करने की जरूरत है कि इसे कैसे बढ़ाया जाए, जानकारों के पास कैसे जाया जाए, उनके पास सीखा जाए। देश भक्ति बहुत बड़ी चीज है। कौन कितना देशभक्ति समय पर कर रहा है, यह सब लोगों को बताने की जरूरत नहीं है। देशभक्ति जब तक लोगों में भरी नहीं जाएगी, युवा शक्तियों को जब तक प्रेरित नहीं किया जाएगा, उनको अध्यात्म की तरफ जब तक जोड़ा नहीं जाएगा, उनके खान-पान चरित्र के बारे में प्रकाश जब तक डाला नहीं जाएगा तब तक देश भक्ति आ नहीं सकती है।
*नीयत दुरुस्त रखो जिससे प्रकृति और देवता खुश हो जाये*
जो रोटी रोजी न्याय सुरक्षा, लोगों के अंदर से खुदा परस्ती, ईश्वरवादिता खत्म होती जा रही है, लोग प्रकृति के प्रतिकूल काम करते चले जा रहे हैं जिससे प्रकृति समय पर जाड़ा गर्मी बरसात न दे करके खुशहाल न रखकर के लोगों को दु:ख दे रही है, इन समस्याओं को कैसे सुलझाया जाए? कैसे लोगों को बताया समझाया जाए? कि भाई आप अपना खान-पान, चाल-चलन, नीयत दुरुस्त रखो जिससे प्रकृति और देवता खुश हो जाएं। आपको विचार करने की जरूरत है कि देश की तरक्की तभी होगी, देश आगे तभी बढ़ेगा जब लोगों की यह समस्याएं दूर होंगी। मुख्य रूप से हमारे समझ में यही आ रहा है। रोटी रोजी और न्याय सुरक्षा की समस्या दूर करना। यह भरपूर अगर मिलने लग जाए तो इससे बहुत सी समस्या हल हो जाएंगी।
*मनुष्य शरीर क्यों मिला*
बहुत से लोगों को यही नहीं मालूम है कि मनुष्य शरीर मिला किस लिए? खाने-पीने मौज मस्ती में ही समय को निकाल दे रहे हैं। वही काम जो पशु पक्षी करते हैं, खाते-पीते बच्चा पैदा करके दुनिया संसार से चले जाते हैं। उन्ही कामों में आदमी लगा हुआ है। जो जैसा कर्म करता है, कर्मों के अनुसार उसका फल मिलता है। इन बातों को अगर बताया समझाया जाए कि ईश्वर खुदा भगवान की बनाई खिलकत, उन्हीं का यह हरा भरा पेड़ पौधे जल पृथ्वी अग्नि वायु आकाश, उन्हीं के आदेश से चलते हैं। उन (प्रभु) को आप याद रखो। कोई उनके नियम को तोड़ नहीं। उनकी बगिया को उजाड़े नहीं। सबके अंदर उसी मालिक की रूह है। सबके अंदर उसी की जीवात्मा है। बिस्मिल्लाह ए रहमान ए रहीम, दया धर्म तन बसे शरीरा, ताकि रक्षा करे रघुवीरा यानी दया धर्म को अपनाया जाए।
*क्या है सनातन धर्म*
जो वास्तव में सनातन धर्म है। सत्य अहिंसा परोपकार धर्म को धारण कराया जाए। यह लोगों को बताया सिखाया समझाया जाए तो यह देश जैसे पहले धार्मिक देश कहलाता था, जैसे पहले लोग आध्यात्मिक थे। लोग केवल शरीर के लिए ही सब काम नहीं करके, इस शरीर को चलाने वाली शक्ति जीवात्मा परमात्मा की अंश के लिए भी कुछ करते थे तब आत्मशक्ति लोगों के अंदर में आ जाती थी। आज भी कहावत है कि धोतियां लोगों की उड़कर के आसमान में जाती थी और सूख करके फिर वापस आ जाती थी। आहुति देने के लिए आदमी वेद मंत्रों का उच्चारण करके अग्नि देवता को खुश कर देते थे। अब यह है कि इन सारी चीजों को कौन बतावे? अकेला आदमी चिल्लाता रहे, नहीं हो सकता लेकिन 10-50 आदमी अगर अपने-अपने स्तर से लोगों को बताने समझाने लग जाएं। पहले लोगों के कर्मों से प्रकृति इतना खुश रहती थी कि एक बार लोग बो करके चले आते, 27 बार काटते थे। जब नीयत दुरुस्त होगी, खानपान चाल-चलन विचार-भावनाएं सही होगी, लोग आध्यात्मवादी होंगे, ईश्वरवादी खुदापरस्त जब वे बनेंगे तब संभव होगा। इन सब चीजों को भी बताने समझाने की जरूरत है।

स्वतंत्र और सच्ची पत्रकारिता के लिए ज़रूरी है कि वो कॉरपोरेट और राजनैतिक नियंत्रण से मुक्त हो। ऐसा तभी संभव है जब जनता आगे आए और सहयोग करे