भवाई की परंपरा में “अबोला रानी नो वेश”
– रंग समूह त्रिवेणी की प्रस्तुति
उज्जैन। भाषाई रंगमंच के क्षेत्र में बड़ौदा गुजरात की संस्था त्रिवेणी का नाम देश की उन कुछ पुरानी रंगमंच संस्थाओं में शामिल है जो अपनी परंपरा का निर्वहन बहुत ही लंबे समय से रंगमंच के क्षेत्र में कर रही है। लोकनाट्य भवाई गुजरात की एक ऐसी कलात्मक धरोहर है जो समकालीन संदर्भों में भी वहां के रंगमंच का एक अहम हिस्सा है। भवाई, पश्चिमी भारत (विशेषकर गुजरात) का प्रसिद्ध लोकनाट्य है। इसे ‘स्वांग’ भी कहते हैं। गुजरात के लोक रंगों से सराबोर भवाई नाट्य संगीत, नृत्य, अभिनय, संवाद, वेशभूषा, बोली यानी पूरा कलात्मक ताना-बाना बहुत ही लुभावना हैं। भवाई का कथानक और उसकी प्रस्तुति इसके आकर्षण के मुख्य कारण हैं। भवाई के रंगमंच पर स्वप्न कथाओं और परियों की कहानियों से लेकर, पौराणिक ऐतिहासिक प्रसंग और आज के हालातों का बखान होता है। विक्रमोत्सव 2022 में रविवार की शाम विक्रमादित्य की कथाओं पर आधारित नाट्य प्रस्तुति “अबोला रानी नो वेश” का मंचन स्थानीय कालिदास अकादमी सभागार में हुआ। विक्रमादित्य और सिंहासन बत्तीसी की यह कथा 32 पुतलियों के माध्यम से लोकनाट्य भवाई के संयोजन में बहुत ही आल्हादित करने वाली थी।
अबोला रानी नों वेज एक रमणी संस्कृत क्लासिक के रूप में दो अलग-अलग समय स्थान में राजा भोज और विक्रमादित्य के जीवन से उठाए हुए कई संदर्भों की दास्तान है नाटक अपने लोक और आधुनिक अंदाज में विक्रमादित्य और सिहासन बत्तीसी की कथाओं को प्रस्तुत करता है। नाटक की कहानी प्रसिद्ध गुजराती लेखक श्यामल भट्ट द्वारा लगभग 150 साल पहले लिखी कहानी पर आधारित है जो विक्रम और सिहासन बत्तीसी के रूप में गुजरात में बेहद लोकप्रिय रही है। यह पद्ववार्ता भी कहलाती है।
18कलाकरों द्वारा अभिनीत इस नाट्य प्रस्तुति का निर्देशन पी.सी चारी ने किया। इस अवसर पर नाटक के सभी कलाकारों का स्वागत महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ के निदेशक श्री श्रीराम तिवारी व वरिष्ठ साहित्यकार डॉक्टर भगवतीलाल राजपुरोहित ने किया। विक्रमोत्सव 2022 में सोमवार को सुबह 10:00 बजे वेद अंताक्षरी कार्यक्रम का आयोजन बाबा गुमानदेव हनुमान मंदिर, पीपली नाका पर होगा तथा शाम 7:00 बजे कोलकाता का रंग समूह पियाल भट्टाचार्य के निर्देशन में नाटक पद्मांक गाथा का मंचन करेगा।