पुत्र की चिट्ठी पिता के साथियों के नाम, पत्र के सहारे चुनावी वैतरणी पार करेंगे चिराग!

Listen to this article


कहा जाता है कि इश्क और जंग में सब कुछ जायज है। चुनाव को नेता जंग के रूप में लेते हैं और इसमें यदि दांव पेच ना खेले तो उनकी राजनीति आगे नहीं बढ़ेगी। हालांकि भारत की राजनीति में इमोशनल पॉलिटिक्स भी बहुत मायने रखती है। जब बात किसी खास वर्ग के बड़े नेता की हो तो यह इमोशन काम कर जाता है।

बिहार के बड़े नेता और दलितों के बड़े चेहरे रामविलास पासवान पिछले 3 हफ्ते से दिल्ली के अस्पताल में भर्ती हैं । इन दिनों वह आईसीयू में वेंटिलेटर पर हैं। उनके पुत्र चिराग पासवान लगातार उनकी सेवा में लगे हैं। चिराग पासवान रामविलास पासवान के पुत्र के साथ-साथ लोक जनशक्ति पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं। बिहार में चुनाव भी है। ऐसे में चिराग के सामने एक दुविधा की स्थिति है। आखिर चुनाव में बिहार जाएं या फिर अपना पुत्र धर्म निभाएं और रामविलास की सेवा में जुटे रहें।

पत्र में बीमार पिता के बारे में लोगों को बताया
चिराग पिछले 2 टर्म से सांसद हैं। राजनीति को वह पूरी तरह से पढ़ चुके हैं, परख चुके हैं। ऐसे में उन्होंने बीच का रास्ता चुना। चिराग ने अपने लोगों को, अपने लोगों का मतलब यह है कि रामविलास पासवान जिस समुदाय की राजनीति करते आ रहे हैं वे लोग और लोक जनशक्ति पार्टी के वे कार्यकर्ता जो लगातार लोजपा के लिए झंडा ढो रहे हैं। उन सभी के नाम चिराग ने एक चिट्ठी लिखी। इस चिट्ठी में उन्होंने अपना पुत्र धर्म भी दिखाया, उन्होंने चिंता भी जताई कि पार्टी कैसे चलेगी। इस चिट्ठी में उन्होंने एनडीए गठबंधन के साथ नहीं हुए निर्णयों की भी चर्चा की। साथ ही अपने बीमार पिता के बारे में भी लोगों को अवगत कराया।

इस चिट्ठी के कई मायने हैं। चिराग पासवान को चिट्ठी लिखने की जरूरत क्यों पड़ी? क्या चिराग पासवान अपने पिता की उस फसल को काटना चाहते हैं जो रामविलास पासवान ने पिछले पांच दशक से बना कर रखी है। साथ ही इस चिट्ठी के माध्यम से अपने कार्यकर्ताओं और अपने लोगों को यह संदेश देना चाहते हैं कि एनडीए में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है? राजनीति के जानकार, समाजशास्त्री इसे अलग-अलग नजरिए से देखते हैं। किसी को लगता है कि यह इमोशनल कार्ड है। तो किसी को लगता है कि चिराग पासवान इतने परिपक्व हो चुके हैं बहुत बेहतर तरीके से वह अपनी चीजों को चला रहे हैं।

बड़े पुत्र होने से बढ़ गई है चिराग की जिम्मेदारी
वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय बताते हैं कि चिराग पासवान का यह चिट्ठी लिखना कोई इमोशनल कार्ड खेलना नहीं है। चिराग एक जिम्मेदार नेता हैं। उन्होंने दो बार लोकसभा का चुनाव जीता है। उन्हें पता है कि इस चुनाव के समय उनके कार्यकर्ताओं पर क्या बीत रही हैं। उसको लेकर उन्होंने यह चिट्ठी लिखी है। साथ ही रवि उपाध्याय यह भी कहते हैं कि चिराग पासवान की जिम्मेदारी उनके परिवार के लिए भी काफी है। पासवान परिवार के सबसे बड़े पुत्र होने की वजह से उनकी यह जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि वह अपने पिता की सेवा करें और वह इस काम को कर रहे हैं। जबकि दिल्ली में बैठकर चिराग पासवान और उनके पार्टी के पदाधिकारी लगातार चुनाव की तैयारी भी कर रहे हैं और चुनाव में किस तरह से उतरना है इसकी समीक्षा भी कर रहे हैं।

भले चिराग पासवान का शरीर दिल्ली में हो, लेकिन उनका दिमाग और उनकी आत्मा पूरी तरह से बिहार विधानसभा चुनाव में लगी होगी। यह चिट्ठी अपने कार्यकर्ताओं में ऊर्जा भरने के लिए लिखी गई है। चिट्ठी के माध्यम से उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष के पिता रामविलास पासवान स्थिति क्या है और गठबंधन की स्थिति किस तरह की है ये भी बताया गया है।

लेकिन कहते हैं न कि सिक्के के दो पहलू होते हैं। बिहार के राजनीति के जानकार और शिक्षाविद नवल किशोर चौधरी इसे पूरी तरह से इमोशनल कार्ड मानते हैं। वह कहते हैं कि इस चिट्ठी के माध्यम से चिराग पासवान इमोशनली लोगों को कनेक्ट कर रहे हैं। रामविलास का इमोशन जिस समुदाय में ज्यादा है उन लोगों तक इस चिट्ठी को पहुंचाया जा रहा है। चिट्ठी के माध्यम से यह बताने की कोशिश की जा रही है कि रामविलास पासवान की तबियत कितनी खराब है और उनकी सेवा में लगे चिराग पासवान उनके कितने आज्ञाकारी पुत्र हैं कि वह अपने पिता को छोड़कर चुनाव में नहीं आ सकते हैं।

रामविलास की कनेक्टिविटी को अपने पाले में करना चाहते हैं चिराग
इस चिट्ठी के माध्यम से रामविलास पासवान की तैयार की हुई कनेक्टिविटी को चिराग पासवान अपने पाले में करना चाहते हैं। चिराग पासवान का चिट्ठी में यह लिखना कि वह पुत्र धर्म निभा रहे हैं। पिताजी आईसीयू में हैं। मेरे लिए पिता के सामने कुछ भी नहीं। बीमार पिता को छोड़कर मैं चुनाव में नहीं आ सकता हूं। यह तमाम बातें लोगों को इमोशनली कनेक्ट करने की ओर इशारा कर रहा है और इसे चिराग पासवान विधानसभा चुनाव में भुना रहे हैं।

चिराग की इस चिट्ठी को लेकर वरिष्ठ पत्रकार अरुण पांडे बताते हैं कि रामविलास की छवि बिहार में सबसे बड़े दलित नेता की रही है। उनके समुदाय में उनका सबसे बड़ा जनाधार माना जाता है। बिहार में लालू यादव और नीतीश कुमार के बाद यदि बड़े नेता का नाम लिया जाता है तो वह रामविलास पासवान हैं। जिनकी पहुंच जन-जन तक है। चिराग पासवान ने इस चिट्ठी को लेकर उन लोगों तक सही तरीके से मैसेज पहुंचाने की कोशिश की है कि रामविलास पासवान के उत्तराधिकारी चिराग पासवान हैं और वह उनके अच्छे वाले पुत्र हैं।

अरुण पांडे यह भी बताते हैं कि चिराग पासवान के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद झारखंड विधानसभा चुनाव उनके नेतृत्व में बुरी तरीके से लोजपा हार चुकी है। बिहार विधानसभा चुनाव चिराग पासवान के लिए अग्निपरीक्षा है और यह चिट्ठी अपने कार्यकर्ताओं और अपने समुदाय के लोगों को बूस्ट-अप करने के लिए उन्होंने लिखी है। चिराग पासवान अपने पिता के पल-पल की रिपोर्ट ट्वीट कर रहे हैं। लोगों को यह बता रहे हैं कि प्रधानमंत्री ने कब बात की, कितनी देर बात की। गृह मंत्री अमित शाह लगातार उनके पिता का हाल-चाल पूछ रहे हैं यह चिराग पासवान ट्वीट करके बता रहे हैं। तो जाहिर सी बात है कि चिराग पासवान अपने पिता रामविलास पासवान की बनाई हुई छवि को इस चुनाव में भुनाना चाह रहे हैं और यह पूरी तरह से एक इमोशनल कार्ड है।

Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today


Son’s letter to the name of the father’s people, with the help of the letter, the election will pass the pollster!

स्वतंत्र और सच्ची पत्रकारिता के लिए ज़रूरी है कि वो कॉरपोरेट और राजनैतिक नियंत्रण से मुक्त हो। ऐसा तभी संभव है जब जनता आगे आए और सहयोग करे